Breaking News

गाँव

गाँव

गांँव ममता की छांँव सा है,मांँ की गोद सा है,जहांँ हमारी सम्पूर्ण सुरक्षा मुकम्मल हो जाती है,सब कुछ महफूज़ हो जाता है। गांँव उस सागर सा है जो शहर रूपी सरिताओं के कौतूहल को अपने में समाहित कर शांत कर देता है,निर्भ्रांत कर देता है। हाल-ए-हालात भी यही बयान करते हैं।
        गांँव ने अब तक सभ्यता, संस्कार व संस्कृति को बड़े जतन से सहेज कर रखा है ,संँभाल कर रखा है ‌।परम्पराओं की पूर्ति का अप्रतिम उदाहरण गांँव ही है।गांँव का जीवन पूर्णतया प्रकृति के अनुकूल है।यहांँ की वृत्ति प्रकृति के अनुरूप होती है।
      यदि ज्ञान को व्यवहार में पाना हो, प्रेम को मूर्तिमान देखना हो या आतिथ्य के औदात्य को अनुभूत करना हो तो वह श्रेष्ठ स्थान गांँव ही है। साहचर्य भाव का सजीव उदाहरण यहीं मिलता है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का भाव भी शायद यहीं से निस्सृत होता है।
       आज की पीढ़ी जो गांँव से विमुख हो रही है, शहर के चकाचौंध में यहांँ की मधुरिमा को विसार रही है, शायद वर्तमान हालात आइना दिखा सके!
        आप बेशक शीर्षस्थ हों,शिखरस्थ हों पर जिस मिट्टी में खेल-कूद के पले-बढ़े उस मिट्टी का कर्ज न भूलें....आप गांँव के गौरव हैं, आपकी इस सफलता में गांँव का भी योगदान है।यहांँ की मिट्टी भी अब आपसे धन्य होना चाहती है।गांँव की संस्कृति को सहेजना व इसे अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कराना आपकी महती जिम्मेदारी है।
         विकास के बहाने अपनी नैतिक ज़िम्मेवारियों से भागने के क्रम में गांँव से पल्ला झाड़ने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा पर सच तो यह है-भौतिकता के चक्कर में मौलिकता खो गयी,सम्पदा के चक्कर में संवेदनाएंँ मर गयीं, स्वच्छंदता के चक्कर में संस्कार खो गये,परम्परा और परिवार बिखर गये।


✍️
अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"(सoअo)
पू०मा०वि०- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उoप्रo)

2 टिप्‍पणियां: