मजदूर
मजदूर
हाँ मैं मजदूर हूँ हाँ मैं मजदूर हूँ।
एक रोटी के कारण घर से दूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ,हाँ मैं मजदूर हूँ।
घर की खेती में मन न लागा,
मैं तो कमाने परदेश भागा।
आशियाने से आज खुद ही दूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ,हाँ मैं मजदूर हूँ।
घर की सुख सुविधा की चिंता,
भूल गया परिवार की ममता।
घर ना जा पाऊं मजबूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ,हाँ मैं मजदूर हूँ।
कारखानों में भीड़ में डूबा,
काम से कभी भी मन न उबा।
आज घर जाने को आतूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ हाँ मैं मजदूर हूँ।
✍️रचयिता
दीपक कुमार यादव
प्रा०वि०मासाडीह
विकास खण्ड-महसी
जनपद-बहराइच
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