कप प्लेट की वार्त्ता
"कप-प्लेट की वार्ता"
चलो कहानी एक सुनाएं,
जीवन के कुछ रंग बताएं।1।
जीवन के कुछ रंग बताएं।1।
एक था कप और एक थी प्लेट,
निवास था उनका बड़ा सा फ्लैट।2।
निवास था उनका बड़ा सा फ्लैट।2।
कप-प्लेट का साथ बहुत था,
दोनों में ही प्यार बहुत था।3।
दोनों में ही प्यार बहुत था।3।
घर में उनका मान बहुत था,
दोनों को अभिमान बहुत था।4।
दोनों को अभिमान बहुत था।4।
दोनों कभी अलग न जाते,
साथ नहाते साथ ही खाते।5।
साथ नहाते साथ ही खाते।5।
कप फूलदार कमीज़ था पहने,
गले में सोने की चेन के गहने।6।
गले में सोने की चेन के गहने।6।
कप बाहर से सुन्दर दिखता था,
पर अन्दर-ही-अन्दर कुढ़ता था।7।
पर अन्दर-ही-अन्दर कुढ़ता था।7।
प्लेट का भी क्या कहना था,
सुन्दर साड़ी उसने पहना था।8।
सुन्दर साड़ी उसने पहना था।8।
साड़ी का बॉर्डर बड़ा ही न्यारा,
दिखने में लगता था प्यारा।9।
दिखने में लगता था प्यारा।9।
दोनों अपनी करें बड़ाई,
बात-बात में बढ़ी लड़ाई।10।
बात-बात में बढ़ी लड़ाई।10।
दोनों में हो गयी तकरार,
बढ़ती रही रोज ही रार।11।
बढ़ती रही रोज ही रार।11।
बात बहुत जब आगे बढ़ गयी,
दोनों में कोर्ट कचहरी हो गयी।12।
दोनों में कोर्ट कचहरी हो गयी।12।
दोनों पहुँचे जज के कक्ष,
रखे अपने-अपने पक्ष।13।
रखे अपने-अपने पक्ष।13।
कप बोला-"ये जान ले तू,"
मेरा बड़प्पन मान ले तू।14।
मेरा बड़प्पन मान ले तू।14।
तपन पेय की मैं सहता हूँ,
अन्दर ही अन्दर जलता हूँ।15।
अन्दर ही अन्दर जलता हूँ।15।
सदियों से जलते पेय लिया है,
कभी न कोई शिकवा किया है।16।
कभी न कोई शिकवा किया है।16।
सबके मुख तक मैं जाता हूँ,
लब उनके छूकर आता हूँ।17।
लब उनके छूकर आता हूँ।17।
कभी दूध से कभी सूप से,
मानव ने रसपान किया है।18।
मानव ने रसपान किया है।18।
कॉफ़ी-चाय की चुस्की लेकर,
मेरा गौरव-गान किया है।19।
मेरा गौरव-गान किया है।19।
मानव ने बस स्वाद लिया है,
मैंने तो कड़वा घूँट पिया है।20।
मैंने तो कड़वा घूँट पिया है।20।
प्लेट तो फिर उखड़ पड़ी,
कप के ऊपर झपट पड़ी।21।
कप के ऊपर झपट पड़ी।21।
सदा ही तेरा बोझ लिया है,
नहीं कभी भी 'उफ़' किया है।22।
नहीं कभी भी 'उफ़' किया है।22।
मेरे ऊपर बैठ है जाता,
मन ही मन तू खूब इठलाता।23।
मन ही मन तू खूब इठलाता।23।
तुझसे तपती चाय लिया है,
मैंने उसको ठंडा किया है।24।
मैंने उसको ठंडा किया है।24।
तपन पेय की दूर भगाया,
उसको पीने योग्य बनाया।25।
उसको पीने योग्य बनाया।25।
तुमने जितना त्याग किया है,
कम उससे न मैंने किया है।26।
कम उससे न मैंने किया है।26।
जज ने उनको सूना गौर से,
फिर हँस पड़ा वह बड़े जोर से।27।
फिर हँस पड़ा वह बड़े जोर से।27।
दोनों की ही बात सही है,
गलत न कोई बात कही है।28।
गलत न कोई बात कही है।28।
उन दोनों का देख हौंसला,
जज ने फिर दे दिया फैसला।29।
जज ने फिर दे दिया फैसला।29।
एक हाथ से बजे न ताली,
दोनों हाथ मिले तब ताली।30।
दोनों हाथ मिले तब ताली।30।
जीवन का तुम मर्म समझ लो,
'सेवा' अपना कर्म समझ लो।31।
'सेवा' अपना कर्म समझ लो।31।
बात समझ में उनके आई,
मन के मैल की हुई धुलाई।32।
मन के मैल की हुई धुलाई।32।
उन दोनों का साथ हो गया,
हाथों में फिर हाथ हो गया।33।
हाथों में फिर हाथ हो गया।33।
दोनों की हो गयी सगाई,
साथ निभाने की कसमें खाईं।34।
साथ निभाने की कसमें खाईं।34।
जीवन उनका खुशहाल हो गया,
आरिफ लखनवी मालामाल हो गया।35।
आरिफ लखनवी मालामाल हो गया।35।
रचयिता---
मास्टर मोहम्मद आरिफ लखनवी,
प्र०अ०,
प्रा०वि०-क्यामपुर,
वि०ख०-दरियाबाद,
जिला-बाराबंकी।(उ०प्र०),
मो०नं०-"9956887289",
E-Mail Id -"ariflakhnavi@gmail.com".
मास्टर मोहम्मद आरिफ लखनवी,
प्र०अ०,
प्रा०वि०-क्यामपुर,
वि०ख०-दरियाबाद,
जिला-बाराबंकी।(उ०प्र०),
मो०नं०-"9956887289",
E-Mail Id -"ariflakhnavi@gmail.com".
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