" माँ "
" माँ "
थामने को आँचल मचलती उंगुलिया है,
माँ तुमसे ही तो सारी मनमर्जियां हैं,
कोना -कोना सन्नाटों ने घेर लिया है
उम्मीदों के दियों ने मुँह फेर लिया हैं
तहख़ाने में गुम बचपन की अर्जियां हैं
माँ तुमसे ही तो सारी मनमर्जियां है...
रोटी से सौंधी खुशबू अब नही आती
मैं जब बुलाती हूँ माँ तब नही आती
अरमानों की कोरी -कोरी पर्चियां है
माँ तुमसे ही तो सारी मनमर्जियां है ,
घर को अब मेरा इन्तजार नही होता
माँ जैसा प्यार बार-बार नही होता
गुमसुम -गुमसुम लोरी चुप-चुप थपकियाँ है
माँ तुमसे ही तो सारी मनमर्जियाँ है,
ओढ़ने -बिछाने की गर्माहट तुमसे थी
जीवन मे खुशियों की आहट तुमसे थी
अब तो हर रिश्ते में केवल तल्खियां हैं
माँ तुमसे ही तो सारी मनमर्जियां है,
माँ तुम जैसे बन कर मैं रह नही पाती
मन की बात अब किसी से कह नही पाती
गुल्लक में खनकें यादों की अशर्फियां हैं ।
माँ तुमसे ही तो सारी मनमर्जियां है।
✍️
प्रीति गुप्ता (स.अ )
प्राथमिक विद्यालय सहुलखोर
विकास क्षेत्र -खजनी
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