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मैं कामगार हूं

मैं कामगार हूं
राष्ट्र के प्रगति का आधार हूं,
उद्योगों को बढ़ाने में मददगार हूं।
व्यापार, कृषि की उन्नति में भी हिस्सेदार हूं,
मैं कामगार हूं।।

भूख बेबसी से लाचार हूं,
बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का गुनाहगार हूं।
  फिर भी अन्याय शोषण का भी क्यों मैं ही हकदार हूं?
मैं कामगार हूं।।

सर्दी गर्मी बरसते अंगारों में भी रहने को तैयार हूं,
बंधुआ मजदूरी करने तक को मजबुर हूं।
मानवाधिकार की नजरों से कोसों दूर हूं,
मैं कामगार हूं।।

घर - परिवार से दूर,
खुले आसमां में रहने को मजबुर हूं।
ख़ून पसीने से सींचता बाजार हूं,
लहलहाते खेतों में अन्नदाता का भी मददगार हूं।
मैं कामगार हूं।।

मालिकों के पैरों तले ना अब कुचलने को तैयार हूं,
पेट की आग बुझाने के लिए सहने को लाचार हूं।
डॉट, फटकार, गाली को समझता मंत्रोच्चार हूं।
मैं कामगार हूं।।

सबको राज मिले, महल मिले 
मै तो खेवनहार हूं,
अपना आशियाना हो,
दो जून की रोटी मिले
रोज काम मिले करने को तैयार हूं
किसी रहनुमा का साथ मिलें तो हक पाने को बेकरार हूं।
मैं कामगार हूं।।

✍️रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,  

प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।

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