सबका कामगार हूँ मैं
सबका कामगार हूँ मैं
जाति-पाति न मज़हब मुझमें,
नभ को छूता आगार हूंँ मैं।
काम ही चारों धाम मेरे,
सबका कामगार हूँ मैं।।
धर्म के सारे मर्म हैं मुझमें,
अध्यात्म का आधार हूँ मैं।
भेदभाव का भान न मुझमें,
सबका कामगार हूंँ मैं।।
मठ मस्जिद का मान है मुझमें,
गिरजाघर का गान हूंँ मैं।
हर क्षण है इबादत मुझमें,
गुरुद्वारे का शान हूंँ मैं।।
धरा चीरकर धन उपजाता,
पृथ्वी का पूरा भार हूंँ मैं।
आज तो थोड़ा पढ़ लो मुझको,
ग्रंथों का सारा सार हूँ मैं।।
✍️
अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"(सoअo)
पू०मा०वि०- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उoप्रo)
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