कब छोड़ी देशवा दहेज रे....
कब छोड़ी देशवा दहेज रे
जनि - जनि में जईसे जागल रहलेन क्रांति,
भागी गयिलन आखिर अंग्रेज रे,
खुली अखियन से हम देखिला सपनवा..
कब छोड़ी देशवा दहेज रे।
करी आह्वान अपने देश के रतनवन से...
हथवा में ले लें फिर कमान रे,
करि लें प्रण अब लिहें ना दहेजवा,
टूटे न दें माई - बाप के अरमान रे...
कोखिए में मारि जाती बाड़ीन लाखों रनिया,
कब छोड़ी देशवा दहेज रे....
दुनियां में सबसे नीक आपन संस्कृति बा,
पर दहेजवा देशवा के माथे पर कलंक रे..
शादी जवन पवित्र बन्धन कहावेले,
बनी गईल बा सौदेबाजी व्यापार रे...
सुख चैन छिनी जाला , बिकी जाला बाबू जी के घर - द्वार रे...
हर साल जाने केतना.. बेटी चडी जालिन शुली पर...
तब जियरा में हुक उठे,
कब छोड़ी देशवा दहेज रे....
ईहे सुझाव बा घर - घर अपनावें,
बिटिया - बेटवा में अंतर मिटावेे..
बेटा संग बिटीयन के पढ़ा लिखा के आत्म निर्भर बनावे,
जब पावेलगिहे जग में सम्मनवा,
तब्बे छोड़ी देशवा दहेज रे...
✍️
रवीन्द्र नाथ यादव (स. अ.)
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ बघोर नवीन
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