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आखिर कब तक

आखिर कब तक 


उमड़ पड़ी व्यथित हुई 
एक करुण वेदना माँ की !
आखिर कब तक ?और क्यों ?
ये निर्मम हत्या होगी ..!
इतना अन्तर क्यों होता है ?
एक बेटी के आ जाने से ..!
क्यों बोझ ,विपत्ति और धनव्यय की...घोतक समझी जाती बेटी .!
मैं माँ हूँ! मैं भी एक बेटी हूँ!
पर रोक नही पाऊ मैं ..
बेटी संहार तेरा होने से ..।
एक अजन्मी बेटी ये..क्रंदन कर 
माँ से बोले ....
आँगन के कोने में बैठी तू
इतना क्यों सिसकती है ।
जननी है फिर कैसे ..तू निर्दयी 
इतनी बन सकती है ..!
न मार मुझे कोख में माँ
विकसित हो धरा पे आने तो दे !इस नव वृहद लौकिक धरा पे
स्वछंद गुंजन तो मुझे करने दे ।
मैं बोझ नही तेरे सिर की
हिम्मत तेरी बन जाऊँगी ।
इस धरा पे ले जन्म मैं ..
किरणों सी बनकर हृदय तेरा
आनन्दित कर जाऊँगी ।
जो पीड़ा तू सहती रोज
अश्रु को आँचल से पोछ
उस पीड़ा को हर लूँगी मैं ।
हूँ तेरा ही तो साया मैं 
बस यही तो समझाऊ !
सोचो गर बेटी का जन्म
ना किसी भी आँगन होगा
फिर बेटो के संग तुम ...
किस बेटी को ब्याहोगें ।
जब कोई बहन न होगी 
फिर भाई किससे राखी बधवायेगे
अस्तित्व मिटा दोगी मेरा जो ..तो
नवरात्रों में कन्या पूजन कैसे कर पाओगी ...!
जिस पीढ़ी की चिंता में तुम
पैसे के पीछे भाग रहे !
बेटी बहुएँ न होगी 
पीढ़ी को कैसे आगे बढ़ाओगे ।
हे माँ! मुझे मारने की ....!
इस हृदय विदारक मंशा को
अपने भ्रमित हृदय के
कपाटों से त्याग जरा ।
मैं भी तो खून तेरा हूँ
इस बात पर विचार जरा ।
माना मैं तेरी बेटी हूँ....पर
बेटा मैं भी बन सकती ।
बेटे से है नेह तुझे....पर
मुझसे तुझे इतना डर !
तेरे बेटे जैसे पढ़कर मैं
बनू  लाठी तेरी जीवन भर ।
मैंजानू तू भी लाचार बहुत है
दुनिया की संकीर्ण विकृत सोच से
तू भी तो घुट-घुट अपमान सहे
मेरे होने से .....!
सुना था मैंने बहुत करुण सभ्य
यहाँ की संस्कृति है ।
कैसी करुण कैसी संस्कृति ?
जिसमे अजन्मी बेटी की हत्या होती है ...।
पूछ रही हूँ मैं गर्भ में बैठी !
क्यों ? मुझ नन्ही कली का
यू संहार करोगे ....?
भला बता दो धरा पे बेटी को
आखिर कब तक ?
                 तुम मारोगे...।।


✍️
दीप्ति राय(दीपांजलि)(सoअo)
प्राo विo रायगंज
खोराबार गोरखपुर

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