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सरकारी स्कूलों के बच्चे बड़े सब्र से बढ़ते हैं

सरकारी स्कूलों के बच्चे बड़े सब्र से बढ़ते हैं


सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ये बच्चे, संघर्ष, धैर्य और समर्पण का प्रतीक हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, मेहनत और लगन से हर मंजिल हासिल की जा सकती है। ये बच्चे देश का भविष्य हैं, जो न केवल अपने लिए बल्कि पूरे समाज के लिए उम्मीद की किरण बनते हैं। इनके जीवन की हर छोटी जीत हमें यह यकीन दिलाती है कि आने वाला कल बेहतर होगा, क्योंकि ये बच्चे अपने संघर्ष और मेहनत से उसे संवार रहे हैं।

गज़ल 

किताबों के अक्षर ही नहीं, हालात भी पढ़ते हैं,
सरकारी स्कूलों के बच्चे बड़े सब्र से बढ़ते हैं।

हवा में उड़ती धूल से वो शब्द संजोते हैं,
इन छोटे हाथों में बड़े-बड़े इरादे होते हैं।

फटे हुए बस्तों में कई ख्वाब छिपे होते हैं,
वो हर सुबह उम्मीद की मूरत से सजे होते हैं।

भूखे पेट पर भी इक हंसी सी छाई रहती है,
उनके चेहरों पे मेहनत की लकीरें बनाई रहती हैं।

अंधेरों से लड़ते हुए वो रौशनी तक पहुंचते हैं,
इनके हौसले राहों की हर मुश्किल को मसलते हैं।।



✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए कविता उनका नया हथियार बना हुआ है। 


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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