ऐसी दीपावली
ऐसी दीपावली
चलो इस बार
कुछ ऐसी दीपावली मनाते हैं।
इस बार
कुछ मिट्टी के दीए
उनसे खरीद लाते हैं।
उन दीयों से
घर का कोना-कोना सजाते हैं।
चलते हैं उस बाजार तक
जो सज गया है भव्य सुंदर सा
मगर उस भव्यता में
फुटपाथ पर लगे हुए उन
दुकानों को ढूँढ आते हैं।
जो बड़ी उम्मीद भरी आँखों से
हर किसी को निहारते हैं।
आस लिए बैठे हैं
आज तो उनके भी कुछ दीए बिक ही जाएंगे।
घर उनके भी कुछ पकवान बन ही जाएंगे।
सड़क के किनारे बिना
किसी छाया में
रहती है इनकी दुकाने
सङक पर ही
शान से अपनी दुकाने ये सजाते हैं।
सङक पर लगी
अपनी छोटी सी दुकान पर
अपने मेहनत का पसीना बहाते है।
रहते है इस इंतजार में
इस बार तो उनकी भी
दीपावली अच्छी मन जाएगी।
हाँ ये दुकानदार वही होते हैं
जिनकी मजबूरी उन्हें
गली-गली आपके घरों तक लाते हैं।
आखिर...इन्हें भी हक है
कुछ खुशियाँ मनाने का।
अपने इंतजार करते बच्चो की खातिर।
कुछ पटाखे,मिठाइयाँ लाने का।
इस बार हमें
अपनी धारणाएं बदलनी होगी। हमें इनकी मजबूरी भी समझनी होगी।
इस बार.....
बिजली के जुगनू नही
मिट्टी के दीए जलाते है।
ज़रूरतमंद है जो उनसे
दीपावली का सामान लाते है।
हाँ चलो इस बार हम एक ऐसी दीपावली मनाते हैं।
कुछ दीए आज हम उनसे खरीद आते हैं।
✍️
दीप्ति राय दीपांजलि
कम्पोजिट विद्यालय रायगंज
खोराबार गोरखपुर
कोई टिप्पणी नहीं