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यह कैसा दौर

गज़ल


यह कैसा दौर है, सवालों में उलझा है जहाँ, 
मूल्य बिखरे हुए हैं, हर सोच में डर का समाँ। 

जिन राहों पर चलना सिखाते थे कभी, 
आज वही राहें खुद को पहचानती नहीं वहाँ। 

जब शक के साए में खुद के ही पैर कांपते हों, 
कैसे सिखाएंगे हम ईमान को अपनी जुबाँ। 


भ्रष्टाचार को रोकने का कैसे हो इरादा, 
जब खुद दिल में बसा हो कोई और जहाँ। 

सच का बोझ हम कैसे उठाएँ यहाँ, 
जब झूठ की हर सुबह में मिलता हो आसमाँ। 

'प्रवीण' के लफ्ज़ों में उलझी ये ज़िन्दगी, 
खुद अपने ही सवालों में खोया हर इम्तिहाँ।  


✍️  शायर : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए कविता उनका नया हथियार बना हुआ है। 


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।



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