देहरी और द्वार
देहरी और द्वार
विवश मन- प्राण,
देख विधि का विधान ।
लिए दीप अवली
ढूंढूं देहरी और द्वार।
खुली जब आंख
थी अमावस की रात ,
अंधेरे रहे ऐसे साथ ,
जैसे हम हों उनके खास ।
देखा आस पास
सबके संग था प्रकाश
जागी मन में एक आस
दूर होगा अंधकार ।
उपजी लगन ,दृढ़ विश्वास ,
मूलतः परिश्रम औ त्याग।
प्रतिभा फूटी उम्र के साथ ,
मिला ज्ञान का उपहार ।
गर्व से भरा मन प्राण ,
जगमग जीवन का द्वार
जन्म से जुड़ा जो अमावस
हुआ दीपों का त्यौहार।
गत की प्रेरणा से आज
दिया जला मन के द्वार ,
युद्ध अंधेरे के साथ ,
तत्पर पुनः एक बार ।
हुआ मन में दृढ़ विश्वास,
सजेगी देहरी और द्वार ,
लगेगी प्यारी बंदनवार।
लक्ष्मी - पूजन शुभ- लाभ,
दीपोत्सव रंगोली के साथ ।
✍️
प्रसून मिश्रा
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