ठण्डी आई
ठण्डी आई
दिनकर का रथ रुक-रुक कर,
क्यों आता है,
बादल अब छुप-छुप-छुप कर,
क्यों आता है।
कोहरे की चादर ओढ़े किरणें आईं,
सजग रहो ठण्डी आई-ठण्डी आई।।१।।
बाबा बिस्तर पर बैठे घबड़ाते हैं,
बच्चे बाहर जाने से डर जाते हैं।
ऑंगन की तुलसी देखो हैं मुरझाईं,
सजग रहो ठण्डी आई-ठण्डी आई।।२।।
पेड़ों के पत्ते पीले-पीले लगते,
सुबह शाम गीले-गीले-गीले लगते,
अचला के अंग-अंग है शीतलता छाई,
सजग रहो ठण्डी आई-ठण्डी आई।।३।।
बादल के दल बर्फ सरीखे लगते हैं,
सर्दी के मौसम में फीके लगते हैं।
ओस बूंद आफत बन धरती पर आई,
सजग रहो ठण्डी आयी-ठण्डी आई।।४।।
जो जवान हैं ठण्डी क्या कर पायेगी,
जो बूढ़े बेजान उन्हें तड़पायेगी।
मस्ती में हैं मस्त युवा ले अंगड़ाई,
सजग रहो ठण्डी आई-ठण्डी आई।।५।।
कृषकों के मन व्यथित बहुत घबड़ाते है,
फसलों की वो देख दशा डर जाते है।
खेतों में पाले की मार नजर आई,
सजग रहो ठण्डी आई-ठण्डी आई।।६।।
पेंडो पर बैठे पंछी अकुलाते हैं,
सूरज को देखें और उन्हें बुलाते हैं।
सर्द दर्द दे रहा सुनो सूरज भाई,
कृपा करो ठण्डी आई-ठण्डी आई।।७।।
दाँत हमारे किट-किट-किट-किट करते हैं,
गात हमारे हिममय होकर गलते हैं।
प्रियतम हैं परदेश मैं बिरहन अकुलाई,
सजग रहो ठण्डी आई-ठण्डी आई।।८।।
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रमेश तिवारी
प्रभारी प्रधानाध्यापक
प्राथमिक विद्यालय हरमन्दिर खुर्द
क्षेत्र-फरेन्दा
जनपद-महराजगंज
उत्तर-प्रदेश
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