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आदमी या रोबोट

आदमी या रोबोट  
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अब न सुबह होती है,
और न शाम होती है,
बस,सिर पर दहकता ,
शासनादेशों का सूरज, 
बेसिक के आंगन में ,
अब परछाईं नहीं होती ।

दिन भर स्कूल में लगे रहो ,
रातभर ऑनलाइन जगे रहो
काम के बोझ में दबे रहो ,
ज्वर में तपे रहो,खाँसते रहो
चाहे हाँफते रहो,काँपते रहो, 
कार्रवाई के डर से मरे रहो ।

 
कोई स्कूल में आ धमके ,
काम को देखकर बमके,
या तुम्हें कोई टोक दे,
तुम करते ही क्या हो ? 
या इस भागम - भाग में,
राह चलते कोई ठोक दे।

मीटिंग में कोई फटकारे,
तो सोचो फिर क्या हो? 
सोचो यही तुम क्या हो?
आदमी हो या रोबोट हो?
सोचना तुम्हें ही है, और
लोचना भी तुम्हें ही है।

सोचते रहो, लोचते रहो,
आँसू जो छलकें तुम्हारे ,
बस उन्हीं को पोंछते रहो ,
हालात को कोसते रहो ,
दिनभर स्कूल में लगे रहो,
रातभर ऑनलाइन जगे रहो

✍️
 प्रदीप तेवतिया ,
7819889835

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