ऐसी उन्नति चुनिए
ऐसी उन्नति चुनिए
लेखनी स्तब्ध है ,
शब्द प्रश्न कर रहे ,
जीवन के मूल्यों के,
अर्थ सब बदल गए ।
दृश्य सब बदल गए ,
भूमिका बदल गई
अपनी ढ़पली अपना राग ,
सब अलग अलाप रहे।
खूब पढ़ें ,खूब बढ़ें ,
मूल मंत्र लेके सब
अपना गांव ,अपनी छांव ,
अपना देश छोड़ गए ।
पिता की सांस टूटी ,
मां की सिसकी सुने कौन ?
अपने विकास को,
अपनों से दूर हुए ।
जितनी जरूरत थी ,
सब तो अपने पास था ,
ढोल दूर के सुहाने ,
इसी भ्रम में लुट गए।
अर्जित संपति हुई ,
सुख औ समृद्धि बढ़ी,
परिभाषा सुख की बदली ,
भाव सब बदल गए ।
बिक गए जज्बात उनके,
कौड़ियों के भाव में ,
मुख में तुलसी गंगाजल को
ताकते जो चल बसे ।
आगे बढ़ते- बढ़ते तनिक ,
सोचिए विचारिए,
भौतिकवाद हावी न हो,
भावपूर्ण रहिए ।
जीवन का मशीनीकरण
भूलकर न कीजिए,
जीवन - मूल्य याद रहे ,
ऐसी उन्नति चुनिए ।
✍️
प्रसून मिश्रा (प्र.प्र.अ.)
प्राoविo पूरे ललक
हैदरगढ़ ,बाराबंकी
बहुत सुंदर 👌
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