सावन
सावन
सावन आया बन ठन कर ,
बादल लाया भर भर कर।
भरे नद ताल ,झूमे खेत वन बाग ,
धरती के जागे सुख सौभाग ।
उमड़ घुमड़ के रास रचाकर,
सावन आया बन ठन कर ,
बादल लाया भर भर कर ।
घेरे धरा के तन मन प्राण
धरती के जागे सोए हुए भाग।
धरा प्रिया को फिर फुसलाकर ,
सावन आया बन ठन कर।
बादल लाया भर भर कर ।
ओढ़े है धरती हरित परिधान,
दूर हुआ सारा संताप ,
गरज चमक से सबको रिझाकर
सावन आया बन ठन कर।
बादल लाया भर भर कर।
भू को ओढ़ाया हरित परिधान,
हुए आनंदित जन मन प्राण ।
बरस बरस कर प्रेम दिखाकर,
सावन आया बन ठन कर।
बादल लाया भर भर कर।
✍️
प्रसून मिश्रा
जिला बाराबंकी
कोई टिप्पणी नहीं