"शिक्षक का सपना: ताकत और पहचान का सफर"
"शिक्षक का सपना: ताकत और पहचान का सफर"
शहर के एक व्यस्त चौराहे पर भीड़ का हुजूम था। हर कोई अपनी गाड़ी पर ‘वकील’, ‘पुलिस’, ‘पत्रकार’, ‘नेता’ जैसे शब्दों का दम भरते हुए रौब से घूम रहा था। तभी सबकी नजर एक साधारण-सी गाड़ी पर पड़ी, जिस पर बड़े गर्व से ‘शिक्षक’ लिखा हुआ था। यह देखकर सबकी आंखों में हैरानी और हल्की मुस्कान झलक उठी। आखिर शिक्षक कब से वीआईपी बन गए?
गाड़ी से उतरे मिस्टर तिवारी, जो एक साधारण शिक्षक थे। मुस्कराते हुए, आत्म-विश्वास के साथ, उन्होंने सबकी तरफ देखा। तभी एक युवा वकील ने लगभग मौज लेने के मौज में चुटकी ली, “अरे वाह गुरु जी! अब तो शिक्षक भी वीआईपी बनने लगे हैं। आखिरकार कौन सी ताकत दिखाने आए हैं?”
मिस्टर तिवारी ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ भाई साहब, जब दुनिया अपनी ताकत दिखाने के लिए शब्दों का सहारा ले रही है, तो मैंने सोचा, क्यों न अपनी असली पहचान पर गर्व किया जाए। आखिर शिक्षक किसी से कम ताकतवर नहीं!”
इतने में पास खड़ा एक पुलिसवाला, जिसने भी अपनी गाड़ी पर 'पुलिस' लिखा हुआ था, मजाकिया लहजे में बोला, “गुरु जी, ताकत तो हमारी लाठी में है। आपमें ताकत किस बात की है?”
तिवारी जी ने शांत स्वभाव से कहा, “सही कहा, आपकी लाठी ताकत की पहचान है, पर हमारी ताकत है वह शिक्षा, जो इंसान को जिंदगी की हर मुश्किल से जूझने का हौसला देती है। जिस दिन इस शिक्षा का सही अर्थ सब समझ जाएंगे, उस दिन हमारी ताकत किसी लाठी से कम न होगी।”
तभी पास खड़ा एक पत्रकार, जो सब अब तक सबकी बातों का मज़ा ले रहा था, हस्तक्षेप करता हुआ बोला, “मिस्टर तिवारी, बड़ा गर्व है आपको इस 'शिक्षक' नाम पर। लेकिन हमें बताइए, समाज की खबरें तो हम बनाते हैं, आप क्या बनाते हैं?”
मिस्टर तिवारी मुस्कुराए और बोले, “खबर आप बनाते हैं, और हम इंसान। आप समाज को उसकी तस्वीर दिखाते हैं, और हम उसे आईना दिखाते हैं। हमारी पहचान सादगी में है, मगर जो बीज हम बोते हैं, वही कल का भविष्य बनता है।”
उनकी बात सुनकर सबकी आंखों में एक गहरी समझ और सम्मान की झलक आ गई। इस छोटे-से वार्तालाप ने सभी को याद दिला दिया कि एक शिक्षक किसी भी वीआईपी से कम नहीं है, बल्कि वह समाज की असली शक्ति है।
इसी बीच अचानक, तिवारी जी का सपना टूट गया। सुबह का उजाला खिड़की से अंदर झांक रहा था और उनकी पत्नी ने उन्हें हल्के से झिंझोड़ते हुए कहा, “अजी उठिए! फिर से लेट जाएंगे और स्कूल जाने में देर हो जाएगी। हां, हां, पता है आपको कि आप बहुत बड़े शिक्षक हैं, लेकिन लोग तो आपको बस एक मामूली मास्टर समझते हैं।”
तिवारी जी एक गहरी सांस लेकर उठे और थोड़ी मुस्कुराहट के साथ सोचने लगे, "कभी-कभी सपने भी हमें सच्चाई से ज्यादा ताकतवर बना देते हैं।" उनकी आँखों में उस सपने की चमक थी, लेकिन मन में यह भी महसूस हो रहा था कि समाज में एक शिक्षक की ताकत को कब सही मायने में पहचाना जाएगा। सपने में जो सम्मान और गर्व महसूस हुआ, वह शायद हकीकत में हासिल करना इतना आसान नहीं था।
बातों में जो है वजन, शिक्षक में वो बात है,
रुतबा नहीं तख्त का, शिक्षा की सौगात है।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए कविता उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
कोई टिप्पणी नहीं