मौलिकता का भ्रम
मौलिकता का भरम लिए, हम चलते हैं राहों पर,
हर सोच नई लगती, पर वो गढ़ी गई है चाहों पर।
कभी किताबों में ढूँढते, तो कभी अनुभव की धूल,
हम अपने ही रंग में रंगते, पर सब होता है उसूल।
जिन्हें मौलिक समझा, वो भी कहीं से आए हैं,
पुरानी लहरों पर हमने नए दावे सजाए हैं।
हर विचार एक जोड़ है, बीते कल की परछाई का,
भ्रम है ये मनुष्य का, कि ये स्वर है खुदाई का।
सच्चाई यही, कि हम हैं धारा के बहाव में,
मूल का भ्रम है वही, जो छिपा है इस बहाव में।
तोड़ दो ये भरम, देखो हर छवि का रंग,
हर अक्स में बसते हैं, जाने कितने अंग।
मौलिकता खोजोगे प्रवीण तो राहें धुंधला जाएँगी,
सत्य तो यही है, सब परछाई बन जाएँगी।
✍️ शायर : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए कविता उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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