सुनने और कहने की दास्तां (ग़ज़ल)
सुनने और कहने की दास्तां (ग़ज़ल)
कान सुनते हैं ख़ामोशियों की ज़ुबां,
जैसे लफ़्ज़ों में हो हर ख़ुदा का निशां।
जो सुनना न चाहे, वो भी सुन लिया,
हर सिहरती सदा में छुपा है जहां।
मुंह बोले वो सच, जो अनकहा रहा,
शब्दों से परे का हो जैसे गुमां।
दिल की गहराइयों से उठे एक सदा,
जो चुप थे हमेशा, वो भी कह गए यहां।
कान और मुंह का ये रिश्ता अजब,
ख़ामोशी में भी मिल गया इक मकां।
प्रवीण के लफ़्ज़ों में सच्चाई मिली,
हर आवाज़ में है उनकी रूह का बयां।
✍️ शायर : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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