लगे यदि राह में ठोकर (गज़ल)
ग़ज़ल
लगे यदि राह में ठोकर झुके हैं ।
नही कमजोर अपने हौसले हैं ।
गई बातों के किस्से दिन ढले तक,
निगेटिव ही क्यों इतना सोचते हैं ।
किसी हद तक सही तुम भी नही थे,
गुनाहों के सफ़ीने बोलते हैं ।
नही मालूम क्या होती गुलामी,
हवाओं में परिंदें डोलते हैं ।
अभी होगा कभी होगा यकीनन,
सियासत है यहाँ जादू बोलते हैं ।
✍️ निरुपमा मिश्रा " नीरू"
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