भ्रम और सियासत के साये
भ्रम और सियासत के साये
हकीकत से जो आँखें चुराते रहे,
भ्रमों के महल वो सजाते रहे।
जो कह दें, वही सत्य ठहराएंगे,
सियासत के रुख़ बस दिखाते रहे।
हुकूमत का नशा हो या तंज़-ओ-विरोध,
जनाब अपने जलवे दिखाते रहे।
जनता के अरमाँ दबे रह गए,
वो ताक़त का सिक्का चलाते रहे।
सवालों से कतराते हर बार वो,
झूठे वादों की चादर लपेटे रहे।
"प्रवीण" ने देखा हर इक खेल साफ़,
सियासत के ये रंग जमाते रहे।
✍️ शायर : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए कविता उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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