कर्मयोगी शिक्षक की व्यथा
कर्मयोगी शिक्षक की व्यथा
मन की एक व्यथा आज मैं बतलाती हूँ
मैं एक प्राइमरी टीचर कहलाती हूँ
गर्व है मुझको ऐसा कहलाने मे
वर्षों लगे मुझे इस बात को अपनाने मे
ज्वाइन किया था मैंने इसको जब
जोश दौड़ता था रगों मे मेरी तब
आज भी जोश मेरा कम नही है
शिक्षक हूँ इसका कोई गम नही है
होता बस दुःख मुझे इस बात का
काश मिल जाए एक साथी किसी काम का
हो जुनून उसमे भी पढ़ाने का मेरे जैसा
तो पूरा हो जाए सपना मेरा जैसा सोचा मैंने वैसा
एक से भले दो होते हैं और दो से भले चार
गर होता विद्यालय मेरा शिक्षकों से गुलज़ार
बच्चों को मिल पाती गुणवत्ता शिक्षा की
बनता उज्ज्वल भविष्य देश का
कमी है बस एक अच्छे सिस्टम की।
एक शिक्षक से पूरे स्कूल नही चला करते
पर भरे स्कूलों मे अच्छे शिक्षक भी नही मिला करते
भारत मे स्कूलों की तस्वीर तब बदल पायेगी
जब शिक्षकों के मन मे सद्कर्मों की लौ जल पायेगी
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क्षीरजा अग्निहोत्री (सoअ)
प्राo विo ठाकुरपुर नंo-02
ब्लॉक- भटहट, गोरखपुर
उoप्रo
बहुत ही अच्छी सोच है काश यही सोच भारत के हर एक शिक्षक मे होता. आप का लेख हम अबश्य पढता हु हम तो बिहार से हु. और एक प्राइवेट स्कूल का टीचर हू
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