आ अब लौट चलें. ..
आ अब लौट चलें. ..
(जिस प्रकार हर समस्या में समाधान निहित होता है,उसी प्रकार हर मुसीबत में सीख सन्निहित होती है।आसन्न संकट से भी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।अंग्रेजी में एक कहावत है-'What you give out comes to you'
प्रकृति भी इसी सिद्धांत पर आधारित है।प्रकृति की व्यवस्था व परम्परा को जितना छेड़ा जायेगा,उतनी ही विकृतियांँ आयेंगी।परम्परा की पूर्ति,नीति का निर्वहन व संस्कृति का संवहन ही सृष्टि में साम्य स्थापित करता है।अभी भी देर नहीं....)
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जो भूल हुई मदहोशी में,
वो भूल न फिर से हो जाय।
चंद दिनों की लौकिकता में,
मौलिकता न खो जाय।।
सहेज सकें संस्कृति को,
सत्य सनातन न खो जाय।
अधुनातन में आंँखें मूंँद,
चिर पुरातन न खो जाय।।
होड़-तोड़ की अंध दौड़ में,
चूक न फिर से हो जाय।
कुछ सपनों की खातिर,
कोई अपना न खो जाय।।
जिह्वा के वशीभूत हो,
पाप पुनः न हो जाय।
नश्वर देह के पालन में,
देह न कोई खो जाय।।
कुदरत की यह घंटी है,
देर न फिर से हो जाय।
प्रकृति सा प्रवृत्ति धरें,
अंधेर न फिर से हो जाय।।
तनिक न कोई ऊबे अब,
उबार न जब तक हो जाय।
सुधार की न कोई सीमा छूटे,
उद्धार न जब तक हो जाय।।
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अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"( सoअo)
पू०मा०वि०दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उoप्रo)
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