प्रकृति की सुंदरता
प्रकृति की सुंदरता
(प्रकृति और बच्चों का वार्तालाप)
बच्चे-
प्रकृति ! ओ प्रकृति!
तू कौन से देश में रहती ?
सब कहते हैं तू सुंदर है बहुत
पर तू सुंदर कैसे दिखती?
प्रकृति-
बच्चों ! मेरी सुंदरता फूलों में,
कोयल की प्यारी कू-कू में,
इन मोर के अद्भुत पंखों में,
चिड़िया के प्यारे चूजों में,
मैं दिखूँ सूर्य की किरणों में,
और चाँद की शीतल चांँदनी में,
कभी दिखूँ मैं काली घटाओं में,
फिर बरसूँ झमाझम बारिश में,
प्रकृति- और बताऊँ?
बच्चे- हाँ
प्रकृति-
मैं लहराऊँ खेत खलिहानों में,
मैं झूलूँ आम के बागों में,
सुबह-सुबह यदि उठोगे तुम
तब दिखूँ ओस की बूंदों में,
मैं हूँ सागर की लहरों में,
मैं हूँ झरने की कलकल में,
ये पर्वत नदियाँ मुझसे ही,
मैं हूँ धरती के कण-कण में,
यह सुंदर दुनिया मुझसे ही
मैं ही सबको मुस्काती हूँ,
पर जब कोई न माने मेरी
फिर सबको सबक सिखाती हूँ,
इसलिए बस मुझको प्यार करो
मेरा आदर सत्कार करो,
दुख होता है मुझको जब
मेरा तुम उपहास करो,
बच्चे-
अच्छा ! अब हमने तुमको जान लिया
अच्छे से पहचान लिया,
तुम सचमुच सबसे सुंदर हो
हम सबने अब यह मान लिया,
तुम ईश्वर की अमूल्य धरोहर हो
तुम्हें अक्षूण्य रखेंगे हम,
अद्भुत सुंदरता को तुम्हारी
बर्बाद न होने देंगे हम ।
✍️
स्वाति शर्मा (सहायक अध्यापिका )
प्राथमिक विद्यालय मडैयन कलां
विकास क्षेत्र - ऊंँचागांँव
जनपद - बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं