ll माँ ll
सर्वप्रथम विश्व मातृ दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
आज मातृ दिवस के अवसर पर प्रस्तुत है मेरी कविता जो मेरी माँ जैसी सभी माताओं को समर्पित है ।
ll माँ ll
जब से होश संभाला मैंने
बस काम ही करते तुम्हें देखा,
चैन से कभी ना बैठी तुम
पर हमने ना देखी कभी शिकन की भी रेखा |
बड़ी बहू थी घर की तुम
वाह क्या जिम्मेदारी निभाई,
कैसे जोड़ कर रखा सब को
याद कर आंखें भर आईं |
मुझे अच्छे से याद हैं वो दिन
जब आते थे सब मिलकर,
और तुम कैसे हंसती हुई खाना बनाती थीं
अकेले रसोई में खड़ी होकर |
कहीं से भी कोई आता था
भूखे पेट न जाता था
रसोई थी मम्मी की 'भाभी दा ढाबा'
भरपेट भोजन वह पाता था |
एम. ए. पास थीं मम्मी तुम
हिंदी की बड़ी ज्ञाता थीं,
कैसे उपन्यास और कविताएं तुम्हें
याद मुंह जुबानी थीं |
यदि ध्यान किसी ने दिया होता
तो आज कहीं प्रोफेसर होतीं,
और जिस सम्मान की हकदार हो तुम
वह सम्मान भी पाती होतीं |
पर पढ़ाई को व्यर्थ न जाने दिया
काबिल बच्चों को बना दिया,
अच्छी सोच और सही सीख से
सही रास्ता उन्हें दिखा दिया |
सहनशीलता की मूरत हो तुम
प्रेम से बहता झरना हो तुम,
विपदा में सबके साथ खड़ी होकर
सही रास्ता दिखाती पथ प्रदर्शक हो तुम |
घर के सब बच्चों की प्यारी ताई हो तुम
थासू, कौस्तुभ की दादी तो दक्ष की नानी हो तुम,
पापा है इस घर के वृक्ष तो
वृक्ष को मजबूती से बांधने वाली जड़ हो तुम |
तुम हो खुली किताब की तरह
सहज ही सब मन की तुमसे कहें,
समस्या हमारी हल करोगी
बस यही आस सब तुमसे रखें |
पर एक प्रश्न मुझे अंदर से कौंधता है कि
हर समस्या का समाधान
तुम्हारे पास होता है,
पर क्यों कोई नहीं सोचता कभी
कि दर्द तुम्हें भी तो होता है |
कितनी सहनशील हो तुम
सबकी यूं ही सुन जाती हो,
गलती चाहे किसी की भी हो
पापा की फटकार तुम ही खाती हो |
आज, कुछ गलत बोल जाऊं तो माफ करना
पर जरूरी है मेरा यह प्रश्न पूछना,
क्यों मम्मी का मजाक उड़ाया जाता ?
क्यों अपशब्दों के साथ उन्हें बुलाया जाता ?
क्यों न किसी ने कद्र की कभी उनके काम की
निस्वार्थ भाव से लगी रही जो सेवा में परिवार की,
क्या वह नहीं जी सकती थी खुलकर अपनी जिंदगी को
क्यों केवल अपमान मिला जबकि हकदार थी सम्मान की...
हकदार थी सम्मान की..
✍️
स्वाति शर्मा (सहायक अध्यापिका )
प्राथमिक विद्यालय मडैयन कलां
विकास क्षेत्र - ऊंँचागांँव
जनपद - बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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