हैप्पीनेस की पाठशाला
हैप्पीनेस की पाठशाला
उस दिन मैं देख रही थी
एक बच्चे को
सहजता और उत्सुकता से
कागज की नाव बनाते हुए।
वह कागज को फैलाता,सहेजता और
उंगलियों से देता उसे
भिन्न भिन्न आकार प्रकार
कभी त्रिभुज कभी चतुर्भुज
ज्यामिति के पड़ाव को
पार करता हुआ
उत्साह से भरपूर।
उस दिन मैं महसूस कर रही थी
कि कितनी तन्मयता से
मैं जुड़ी जा रही थी
उसके क्रियाकलापों से
यदा कदा वह कनखियों से ताक लेता था मेरी ओर
अनजानी अनदेखी करके मैं भी देखूं उसकी ओर
मौन समर्थन दे रही थी
उसकी सहज क्रियाओं को
चुपके से मैं देख रही थी
उसके मन के भावों को।
उस दिन मैं कुछ अलग कर रही थी
मैंने उसे रोका नहीं, उसे टोका नहीं
खुद से करने दी मनचाही सर्जना
उसकी सफलता के उल्लास में
जीवंत हो उठी हैप्पीनेस की पाठशाला
उसके इन मनोभावों पर कहानी गढूं
या कोई कविता पढूं
नहीं शायद इससे भी ज्यादा कुछ करना होगा
क्यों न उसके पूर्वज्ञान को सहेज लूं
और दूं उसकी समझ को विस्तृत आयाम
और उजागर कर दूं उसके भीतर का छिपा हुआ
स्वत: प्रेरित भाव।.
✍️
संगीता श्रीवास्तव(प्र.अ.)
प्राथमिक विद्यालय झरवा
क्षेत्र खोराबार, गोरखपुर
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