उम्मीदों का सफ़र
उम्मीदों का सफ़र
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काश्श्श्श....
शब्द कभी भी पीछा
नहीं छोड़ता
जैसे कि
जिंदा रहती है आस
डूबते सूरज के साथ भी
और
लौटते हुए पांव
लाख बाधाओं के
बाद भी
तय करते चले जाते हैं
हज़ारों हज़ार मील
जिन्हें
कुछ सूझता
ही नहीं
न पैर की बिवाई
न पीठ से सटा पेट
न पपड़ाए होंठ
न कोठर सी धंसी आँखें
न आँखों से बहकर सूख
चुका पानी
और
न तो तांबई शरीर से
रिसता
खारा पसीना
वो तो
हर क़दम
पर जलाते हैं आग
उम्मीदों का
और
तय करते चले जाते हैं
मीलों का
सफ़र
उम्मीदों का सफर .....
✍️
राजीव कुमार(स.अ.)
पू.मा.वि. हाफ़िज नगर
क्षेत्र - भटहट
जनपद - गोरखपुर
Wonderful
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