मुझे अपने घर दो पहुंचाए
मुझे अपने घर दो पहुंचाए
ना घर है, ना कोई ठिकाना
बस भूख है, प्यास है
और अपने घर को है जाना
बेबस है, लाचार हैं
पेट पर ऐसी मार है
हर तरफ हाहाकार है
जीना अब मुहाल है
कैसे ये बेड़ा पार हो
दुःख का ना नामो निशान हो
बस कैसे घर को पहुंच जाए
कुछ ऐसा कोई उपाय हो
पैदल चल चल कर थक गए
जीवन पथ पर ऐसे भटक गए
उम्मीद की आस भी छूट रही
मानो मेरी दुनिया लूट रही
कोई तो कुछ करो उपाय
मुझको अपने घर दो पहुंचाए....
मुझको अपने घर दो पहुंचाए....🙏
✍️
साधना सिंह ( स.अ.)
प्रा. वि.उसवाबाबू
खजनी, गोरखपुर
Nice
ReplyDeleteThank you
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