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मै मजदूर हूं

मै मजदूर हूं पर अब मजबूर हूं
चाह है अपने घर जाने की, पर घर से कोसो दूर हूं
मै मजदूर हूं पर अब मजबूर हूं
   
   कैसी ये लाचारी है
  मेरी बीवी पेट से भारी है
  उसको ना आराम दे सका
 उसके कन्धे पर डाली थोड़ी सी जिम्मेदारी है
 चलते चलते वह हाफ रही
 फिर भी मुझ में हिम्मत बांध रही
 कोई तो हम पे तरस खाओ
 मै बेबस और मजबूर हूं
हां मै मजदूर हूं पर अब मजबूर है   

है सबने नाता तोड़ लिया 
हमको यूं तन्हा छोड़ दिया
कल तक थे जो मेरे अपने
हाथ झटक मुंह मोड़ लिया 
कोई तो सुध मेरी लो
खाने को मुझको रोटी दो
मुझको ना तुम ऐसे देखो
मै अपनी मां का नूर हूं
हां मै मजदूर हूं पर अब मजबूर हूं

कोई तो सहारा दो
मुठ्ठी भर ही आसरा दो
चाह नहीं धन दौलत की
बस सोने को एक कोठी दो
उम्मीदों का दामन छूट रहा
मै अब भी कोसो दूर हूं
हां मै मजदूर हूं, हां मैं मजदूर हूं पर अब मजबूर हूं पर अब मजबूर हूं.......

✍️
साधना सिंह(स.अ.)
प्रा. वि. उसवाबाबू
खजनी,गोरखपुर

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