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ये ज़िन्दगी

ये ज़िन्दगी👁

अक्सर उठता है एक सवाल?
मुझसे पूछे मेरा मन बार-बार....
आशाओ को लिए हुए
विवशताओं से बधे हुए
सपनो को संयोजे हुए
रिश्तों को समेटे हुए ।
क्या है ये जिन्दगी ?
किस काम की है ये ।
कुछ बेबसी की खातिर 
बिकती है जिन्दगी
हर सुबह ,हर रात करवट सी
लेती है जिन्दगी ।
हर शक्स से इम्तहान लेती है
जीवन के हर मोड़ पर
एक दर्द सा देती है जिन्दगी ।
क्या है ये जिन्दगी ?
किस काम की है ये ।
कब तक बंधी रहेगी 
विवशता की बेड़िया ।
कब तक टूटेगी जाने
समाज की रूढ़िया ।
ऐ जिन्दगी जरा तू 
इतना ही बता दे
मन में भरा असत्य
उसको तो मिटा दे ।
भटके हुए है जो
उन्हें सत्यता दिखा दे ।
क्या है ये जिन्दगी?
किस काम की है ये ।
रोता है कही कोई
अपने जख्म को लेकर ।
हंसता है कही कोई 
अपने कर्म को लेकर ।
रूकती हुई साँसों में
नवदीप्त तू जला दे ।
क्या है ये जिन्दगी ?
किस काम की है ये ।
जकड़ी हुई है कई बंधनो मे....
सिकुड़ी हुई है कई कोनो में ...
कभी मौत से लड़ती है
कभी जीने से डरती है ।
क्या है ये जिन्दगी?
किस काम की है ये ।
संघर्ष से भरा,हर मोड़ लाती है
मंजिल को अक्सर ....
कोसो छोड़ आती है ।
रोती है कभी ,नाकाम होकर ये
होती है खत्म कभी ....
परेशान होकर ये ।
उजड़ती है कभी माँग की
सिन्दूर की तरह ...!!
क्या है ये जिंदगी ?
किस काम की है ये ।
जाने कब जिन्दगी का
ये बदलेगा स्वरूप ....
गिरता हुआ संभलेगा कब !
गिरा हुआ उठेगा कब !
विवशता की बेड़िया
कब टूट पायेगी !!
मन के कलुष असत्य से
कब छूट पायेगी ?
पूछता है मन मेरा
बार-बार ये........
क्या है ये जिन्दगी ?
किस काम की है ये ।


✍️
दीप्ति राय (दीपांजलि)स0अ0
प्राo विo रायगंज खोराबार
    गोरखपुर

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