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ओ! मेरे माटी के पंछी🐦

ओ! मेरे माटी के पंछी🐦

ओ! मेरे माटी के पंछी, कहांँ तू उड़ता जाए रे, 
स्वदेश से सुंदर कुछ भी नहीं, परदेस से मोह क्यूँ लगाए रे,
ओ! मेरे माटी के पंछी कहाँ तू उड़ता जाए रे......... 
जिस देश में तूने जन्म लिया, सरहद क्यूँ उसकी पार करे, 
जिस माटी में तू खेला कूदा, तू क्यूँ न उसकी कद्र करे,
अरे! देश की सेवा सर्वोपरि,कर क्यूँ न फर्ज़ निभाया रे,
ओ मेरे माटी के पंछी कहाँ तू  उड़ता जाए रे...... 
जिस मांँ ने तुझको जन्म दिया, उसको ही तू भूल गया,
जिस बाप ने तुझको बड़ा किया, वह ऋण भी चुकता नहीं किया, 
अरे! मांँ बाप की सेवा परम धर्म, कर क्यूँ न मान बढ़ाया रे,
ओ! मेरे माटी के पंछी कहांँ तू उड़ता जाए रे..... 
गुरुओं ने तुझको ज्ञान दिया,तू क्यूँ न उनका मान करे,
क्यूँ न कुछ ऐसा कर जाए, जो वे  भी तुझ पर नाज़ करें,
हो राष्ट्र समर्पित कर्म कर, क्यूँ न अपनी पहचान बनाए रे,
ओ! मेरे माटी के पंछी कहाँ तू उड़ता जाए रे..... 
यह धरा नहीं धरती मांँ है, जिसने हम सबको सींचा है,
रज - रज इसकी, कण-कण इसका,बलिदानों की गीता है, 
ऐसी प्यारी धरती माँ को तू क्यूँ न शीश झुकाए रे,
ओ! मेरे माटी के पंछी कहाँ तू उड़ता जाए रे..... 

 एक छोटा सा प्रयास
✍✍✍✍✍✍
स्वाति शर्मा (सहायक अध्यापिका)
प्राथमिक विद्यालय मडै़या कलां
विकास खण्ड-ऊंँचागांँव
जनपद -बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश

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