📌बया आई मेरे अंगना 🐥
📌बया आई मेरे अंगना 🐥
उठी सुबह जब मैंने देखा
आँगन में एक घरौंदा,
उत्सुकता बढ़ी हृदय में,
जानूँ, है यह कौन परिंदा ?
तभी चूँ-चूँ करती बया वहाँ आयी,
मुंँह में लेकर तिनका,
खत्म हुई जिज्ञासा हृदय की,
अरे!यह घोंसला है बया का ।
पर कब यह घोंसला बनाया इसने,
शाम तक तो कुछ न था,
क्या रात-रात में बुन दिया सारा,
घरौंदा यह तिनकों का?
कितना सुंदर कितना प्यारा,
घोंसला यह बया का,
देखके उसको भूल गयी मैं,
सारा काम पड़ा अभी घर का।
फिर अंदर से बेटा आया,
मांँ यहाँ क्या देख रही हो?
यहाँ खड़ी-खड़ी तुम मंद-मंद,
यूँ ही मुस्कुरा रही हो ।
बेटा आओ, तुम भी देखो,
यह सुंदर घर चिड़िया का,
रात-रात में बुन दिया सारा,
घर उसने तिनको का ।
बेटे को भी हुआ हर्ष,
झटपट से लाया दाना,
पानी भी भर दिया बर्तन में,
ले बया यह तेरा खाना।
फिर मुझसे मेरा बेटा बोला,
माँ डालूँगा रोज मैं दाना,
पानी भी भरूँगा बर्तन में,
जो न पड़े इसे कहीं जाना।
चलो आओ मिले सद्भाव रखे
हम अपने इन जीवो से,
जिन सत्कर्मों को भूल गए,
उन्हें दोहराए फिर मन से ।
✍
स्वाति शर्मा (सहायक अध्यापिका )
प्राथमिक विद्यालय मडैयन कलां
विकास क्षेत्र - ऊंँचागांँव
जनपद - बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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