रे मानव संँभल जा जरा....
"आज के युग मे प्रकृति मानव से क्या क्या कहना चाह रही है इसको बड़ी सरलता से अपने भावों को व्यक्त किया है"
मुझसे यूंँ खिलवाड़ न कर, बदला में चुनके लूंगी
गलती मे न सुधार किया तो
सर्वनाश मैं कर दूँगी....
रे मानव संभल जा ज़रा .........
मैं हूंँ एक मेरे रूप अनेक,
अब सुन कैसे-कैसे......
कभी दुलार दिखाती मांँ, कभी स्नेह लुटाती माँ
चिड़ियों की चह- चह में, मधुर संगीत सुनाती मांँ
पर तेरे इन कुकर्मों से अत्यंत व्यथित दु:खी है माँ
कितनी बार तुझे संकेत दिए कभी दावानल,
प्रचंड भूकंप बनकर पर तूने मुझे पहचाना ना,
करता रहा मस्त होकर जो - जो तुझे था करना
पर अब अति हो गई तेरी ये रौद्र रूप दिखाये मांँ
आ गई तुझको सबक सिखाने बनके विनाशक कोरोना
जितना तूने सोचा न होगा उतना हाहाकार मचा दूँगी
सर्वनाश मैं कर दूँगी......
सर्वनाश मै कर दूँगी.....
रे मानव सँभल जा जरा....
मैंने सुंदर झरने दिए,दी तुझको पर्वत नदियाँ पर तूने न उनका मान रखा, जी भरके की शैतानियाँ,
सब कुछ तेरे अनुकूल किया,सब कुछ तुझपे वार दिया
पर तूने क्या किया ?
पर तूने क्या किया ?
भोग विलास में मद होकर बस तूने स्वार्थ सिद्ध किया
कैसे बनूँ संसार का स्वामी, इस बात पर तर्क किया
पर सुन मूर्ख....
पर सुन मूर्ख....
जैसे तुझे पैदा किया, ऐसे ही सब कुछ हर लूँगी
सर्वनाश मैं कर दूँगी....
सर्वनाश मैं कर दूँगी....
रे मानव संभल जा जरा.....
इस धरती पर जीने का पाया हक जितना तूने
चींटी से चमगादड़ तक, सबको उतना ही हक दिया मैंने
बुद्धि दी, तुझको ज्ञान दिया,ताकि तू मानव महान बने
सभी प्राणियों से सद्भाव रखे, विश्व का कल्याण करें,
पर तूने मुझे दुत्कार दिया, जी भर के खूब उपहास किया,
धरती के इन जीवो को कच्चा काट के सूप पिया,
मछली, मुर्गा, बकरी,गैया, सब पर अत्याचार खूब किया,
दिल ने दहला तनिक तेरा, बन मानव से शैतान गया,
तड़पाया जैसे मेरे जीवो को, ऐसे ही तुझे तड़पा दूँगी,
सर्वनाश मैं कर दूंँगी....
सर्वनाश मैं कर दूँगी....
रे मानव संँभल जा जरा....
जबसे दी बुद्धि तुझको,नित नए प्रयोग रोज किए,
छोटी सी आरी से लेकर परमाणु बम तैयार किए, कुछ अच्छे कर्म भी किए तूने पर फिर स्वार्थी तू हो गया,
और उस स्वार्थ सिद्धि में तूने,मानवता का त्याग किया,
तूने मानवता का त्याग किया तो स्वार्थी हो गयी ये भी माँ,
मैंने कुछ किया ऐसा कि अर्थी संग भी कोई जाए ना,
आगे निकलने की दौड़ में अंधा तू बन गया,
और तू ये भी भूल गया कि मैं भी हूँ तेरी माँ,
याद रख .....जरा याद रख.....
जितना तू मुझको रुलाएगा, उससे ज्यादा मैं रुला दूँगी,
सर्वनाश मैं कर दूंँगी....
सर्वनाश मैं कर दूँगी....
रे मानव संँभल जा जरा....
✍️
स्वाति शर्मा (सoअध्यापिका)
प्राथमिक विद्यालय मडैयां कलां
विकास खण्ड-ऊँचागाँव
जनपद-बुलन्दशहर
(उत्तर प्रदेश)
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