प्रकृति
📌 प्रकृति
मेरी श्वासों में भी थोड़ी स्वच्छ हवा आने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो....,
आलौकिक असीमित जगमग जगमग रवि रश्मियां,
थोड़ा तो धैर्य धरो चंद्र-नक्षत्रों को बतियाने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो.....
विमल रम्य रूप ये निरख लो विस्मित लोचन से
मद्धम- मद्धम मलय मकरंद मधुरिम को उड़ जाने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो....
चंचल -चंचल श्वेत लहरियां बढ़ती है रुक जाती है
सुनो उनकी मुदित मंगलाचार जलमाला को गहराने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो....
कुमुद नवेली कुंजन में घूँघट में मुँह ढाप रही
श्रम साध लीला लोचन देखो सहस्त्रदल खिल जाने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो....
प्रकृति की गोद के बालक तुम्हीं अकेले नही हो जन्में
पट खोलो पिंजरों के स्वछन्द पंक्षियों को उड़ जाने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो.....
हरी-भरी अनुपम सृष्टि में जीवन का वरदान मिला है
कर्म साध लो भाग्य भोग लो मानवता को साम्राज्य बढ़ाने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो…..
अधिष्ठात्री प्रकृति का संतोष कोष है समृद्ध अपार
बलिहारी बलिहारी वृहद रूप को खुल के मुस्काने दो,
थोड़ा तुम भी सुस्ता लो थोड़ा मुझको सुस्ताने दो ।
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प्रीति गुप्ता (स.अ.)
प्रा.वि.सहुलखोर
खजनी
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