जिन्दगी
जिन्दगी
साँस का क्या भरोसा है साथियों,
आशियाना छोड़ कब चल जाएगी।
ज़िन्दगी जो मयस्सर हुई है हमें,
क्या पता कब यूँ ही निकल जाएगी।
आईनों से जो रूठे तो बातें करें,
यूँ ही सपनों में मुलाकातें करें,
यूँ ही दिल को कब तक सम्भालें हम,
खुद ही प्रश्नो के हल निकाले हम,
कब कहाँ रोशनी ये ढल जाएगी,
आशियाना छोड़ कब चल जाएगी।
ज़िन्दगी जो मयस्सर हुई है हमें,
क्या पता कब यूँ ही निकल जाएगी।
साँस का क्या भरोसा है साथियों,
आशियाना छोड़ कब चल जाएगी।
तोड़ दो ये बन्धन जाति धरम,
सबसे पहले बूझो सबके मरम।
निज अहंकार को त्यागो तुम,
लोभ माया मोह से भागो तुम।
प्रेम में ये दुनिया फिर गायेगी,
आशियाना छोड़ कब चल जाएगी।
ज़िन्दगी जो मयस्सर हुई है हमें,
क्या पता कब यूँ ही निकल जाएगी।
साँस का क्या भरोसा है साथियों,
आशियाना छोड़ कब चल जाएगी।
तर्कशील बनो बुद्धिजीवी बनों,
दान देने में राजा शिवी बनों।
भक्त हो तो हो वो हनुमान सा,
भाई हो तो भरत सा गुणवान सा।
सारी दुनिया प्रेम में जगमगाएगी,
आशियाना छोड़ कब चल जाएगी।
ज़िन्दगी जो मयस्सर हुई है हमें,
क्या पता कब यूँ ही निकल जाएगी।
साँस का क्या भरोसा है साथियों,
आशियाना छोड़ कब चल जाएगी।
✍️रचयिता
दीपक कुमार यादव(स•अ•)
प्रा• वि• मासाडीह
विकास खण्ड-महसी
जनपद-बहराइच
मोबाइल:9956521700
9120621111
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