ईर्ष्या
ईर्ष्या
माफ कर दो उस शख्स को जो आपसे जलता है ,
है वही ये आत्मा जो हरपल आपसे डरता है।
पथ भ्रमित यदि वो करे तो धैर्य रखना तुमको है,
ईर्ष्या ऐसा रोग है जो कुंठित करती इस मन को है।
शान्त चित्त व धैर्य तो वीरों की ही पहचान है,
असंयमित वो होते है जिनमें बची न जान है।
क्या करे वो शख्स भी करता सदा जो कुकर्म है,
अज्ञानता के कारण से लगता यही उसे धर्म है ।
धूर्त होने की वजह से लगती उसे न शर्म है;
माफ कर दो यह समझकर शख्स ये बेशर्म है ।।
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शिवेन्द्र सिंह (स•अ•)
प्रा•वि•बघैला
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