प्रकोप है प्रचंड !
प्रकोप है प्रचंड !
प्रकोप है प्रचंड हर तरफ है इसका दंभ, अब भी समय है खुद को तू सम्भाल ले,
जाति-धर्म छोड़ चले जा एकता की ओर, मानवता को ही अपनी तू पुकार ले।
क्यों है हर कदम पे द्वेष मन में व्याप्त है क्लेश, शिक्षित समाज होने का प्रमाण दे,
पूरा विश्व याची है जिस देश के यूं सामने ,उस राष्ट्र को तू ख़ुद भी तो सम्मान दे।
वो इंसान ही ग़लत है जिसने कारण इतनी गंध है, क्यों उसके बचाव में तू परेशान है,
गर मृत्यु आई सामने तो जान सबकी जाएगी, सारे विश्व का यही तो इम्तिहान है।
अब भी समय है थाम आ के एकता की डोर, उससे ही तेरा मुल्क़ तेरी जान है,
ये समय भी टल जाएगा सूर्य फिर निकल आएगा, यही तो तेरे धैर्य की पहचान है।
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दीक्षा मिश्रा(स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय असनी द्वितीय
शि०क्षे०:-भिटौरा
Very nice poem lines
जवाब देंहटाएंVery nice poem lines
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