प्रकृति का नारी रूप
प्रकृति का नारी रूप
तुम श्रद्धा, तुम स्निग्धा
रूपसि तुम अवतार हो
तुम वात्सल्यमयी जननी
तुम हृदय झंकार हो।
नील हरित परिधान में
तुममे यह जीवन बसा,
दे दिया सब कुछ सृजक ने
शेष क्या सुन्दर बचा,
दर्श देती यूँ सहज
तुम स्वयं उपकार हो,
तुम वात्सल्यमयी जननी
तुम हृदय झंकार हो।
मैं बहुत हूँ दीन हीन
और स्वार्थ से पल्लवित
जग के सारे दुर्गुणों से
बंध व करुणा कलित
तुम सुनयना,तुम सुमुग्धा
तुम रत्न का अम्बार हो
तुम वात्सल्यमयी जननी
तुम हृदय झंकार हो।
✍️श्रेया द्विवेदी(स.अ.)
प्राथमिक विद्यालय देवीगंज 1
Really great mam
जवाब देंहटाएंVery nlce
जवाब देंहटाएंBahut hi sunder piroya h saty ko shabdo me mam
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