सैनिक के त्यौहार
सैनिक के त्यौहार
जश्न है अपने घरों में
होली दीवाली मनी है
पर वतन के लाल की
सरहद पे तो गोली चली है |
जल रहे हैं दीप. घर में
रंग होली का चढा़ है
सरहद-ए-हिन्दोस्तां पर
रंज की गोली चली है |
घर में बेटा राह तकता
मां नयन से जल बहाती
काश मेरा लाल आता
उसको मैं गुझिया खिलाती |
अपनें आंचल से लगाकर
खूब मैं उसको खिलाती
लोरियां बचपन की किस्से
गांव के उसको सुनाती |
बेटा पिचकारी चलाता
रंग खुशियों का उडा़ता
पर ज़हन में ही पिता की
याद से दिल सहम जाता |
बेटी कंगन हांथ में यूं
सुबह से है खनखनाती
ज्यूं पिता को वो सुरीली
तान से है घर बुलाती |
पत्नी है. श्रंगार करती
याद कर अपने सजन को
फक्र है महसूस करती
सौंपकर उनको वतन को |
पिता रस्ते पर खडे़ हैं
लाल की रस्ता निहारें
शाम होने आयी पर
उम्मीद का सूरज निहारें |
धड़धडा़ते वो पटाखे
गांव में खुशियां बहाते
सरहदों पर लाल अपने
देश की गरिमा बचाते |
टकटकी सरहद पे पर मन
गांव का बचपन निहारे
कट रही है जिंदगी अब
चिट्ठियों के ही सहारे|
कंधे पर बंदूक रक्खे
आंखों से आंसू न टपके
भीग जाए ना ये गोली
आंसू हैं आंखों में अटके |
देश की खातिर. करे
कुर्बान वो अपनी जवानी
ना कोई त्यौहार है
ना ईद ना होली मनानी |
रक्त की होली वो तोपों
से है दीवाली मनायी
चूम ली मिट्टी वतन की
मां की जब जब याद आयी |
✍️
अभिषेक बाजपेयी
सहायक अध्यापक
प्रा0 वि0 तकियापुरवा निघासन
लखीमपुर खीरी
कोई टिप्पणी नहीं