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विधवा / विधुर का जीवन


जीवन साथी के बिना,
जीवन है भार-सा,
तन मन में घुटन होती,
दुख है अपार-सा।


कभी सीता बिन राम,
कभी कान्हा बिन राधा,
जीवन है एक वीरान,
जहां कोई नहीं साथी।


प्रियजनों के बीच,
भीतर ही भीतर,
जीना है एक संघर्ष,
जिसमें कोई नहीं साथी।


जीवन है एक यात्रा,
जिसका कोई अंत नहीं,
विधवा/विधुर का जीवन,
जिसमें कोई सहारा नहीं।



✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।


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