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सभ्य जिद्दी

सभ्य जिद्दी


हाँ! मैं जिद्दी हूँ...
सभ्य जिद्दी हूँ।
बस इतना जान लो मुझे...
वक्त हालात ने,
उलझनों को बढ़ाया।
 बैठ मिलकर सबसे,
बातों बातों में सब सुलझाया।
 दुखड़ा नहीं कुछ...
 मजबूत से विचारों को रखती हूँ। 
बस शब्द ही शब्द है!
जिंदगी की पहचान मेरी...
 जिद है इसे...
शिला सी मजबूत करती हूँ।
 मेरे दिल में एक..
जिंदा सभ्य सा परिंदा है। 
अपनों की उम्मीदों से अक्सर, 
घायल होकर...
अपनी ही उम्मीदों से जिंदा है। 
जमी पर उतर के देखा तो, 
बारात थी तमाम बातों की।
 जाने क्यों हर बात को,
सुलझाने की जिद रखती हूँ।
बस इतना जान लो मुझे.....
मैं सभ्य जिद्दी हूँ।
दुनिया ने मुझे कसूरवार ठहराया कई बार... कई बातों में,
कसूरवार बनकर भी,
 सभ्य जिद्दी सी..
उसी कसूर पर..
हर दिन अड़ी रहती हूँ।
नम्रता,भाव प्रधानता लिए,
 कभी-कभी अपनी
 बातों पर अड़ जाती हूँ।
मुझे जो करना है उसे अक्सर... सबके सामने मनवाती हूँ।
पर....
विश्लेषण किया मैंने 
कई बार खुद का...
अंतर्मन की आवाज
 कानों में आती है।
हाँ!
मैं जिद्दी हूँ।
सभ्य सी जिद्दी हूँ।
चोट न पहुँचे मेरी बातों से
 किसी के मन को...
 शब्दों को व्यवस्थित सटीक करके ही कहती हूँ।
 फिर भी अन्य की विश्लेषित टिप्पणियों में....
 स्वयं को मैं जिद्दी पाती हूँ।
जिद्दीपन भी बड़ा
 अजीब सा है मेरा....
किसी का अहित नहीं,
 हर एक का भला चाहती हूँ।
सरस सरल शब्दों को,
 सबके बीच लाती हूँ।
 फिर भी इन्हीं शब्दों की बदौलत, 
मैं सभ्य जिद्दी कहलाती हूँ।
वास्तव में.....
इस विश्लेषण में
कहीं ना कहीं मैं
खुद को सभ्य जिद्दी पाती हूँ।

✍️
दीप्ति राय (दीपांजलि)
सहायक अध्यापक 
कंपोजिट विद्यालय रायगंज खोराबार 
गोरखपुर

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