आदमी को समझना है भरम
पहाड़ चढ़ सकते हो,
नदी पार कर सकते हो,
पर
आदमी को समझना है भरम।
उसके मन की गहराई,
उसके दिल की बात,
उसके रहस्यों को
समझना है भरम।
वो कभी हँसता है,
कभी रोता है,
कभी गुस्सा होता है,
कभी प्यार करता है।
उसके व्यवहार को,
उसके इरादों को,
उसकी सोच को
समझना है भरम।
वो कभी अच्छा होता है,
कभी बुरा होता है,
कभी उदार होता है,
कभी स्वार्थी होता है।
उसकी प्रकृति को,
उसके स्वभाव को,
उसके व्यक्तित्व को
समझना है भरम।
✍️ प्रयासकर्ता : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
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