लिखना है मुझे
लिखना है मुझे
मौन लेखनी को तीव्र
जुबा बनाना है मुझे।
आक्रोश चीख़ कर कह रहा है,
हर हाल में....
पुरानी पेंशन पाना है मुझे।
पैनी कर ली है धार...
मैंने अपने कलम की यारों,
राजनीति के ढ़ोल की पोल खोल
अपने हक के लिए
आज लिखना हैं मुझे।
अपने हर हक को मांगों को
सबसे साँझा करके
लेखनी से अपने
आईना सबको दिखाना हैं मुझे।
नासूर बनते जा रहे
हमारे हक के घाव यारों...
शिक्षक हूँ शायद.....अब तक इसलिए मौन हूँ।
सब्र का इम्तिहान अब
इस कदर न लीजिए साहेब...
सब्र को तोड़ धड़कता सा
ज्वालामुखी बनना हैं मुझे।
आखिर जान तो लो
हमारा भी एक संसार है।
परिवार की जिम्मेदारियों का
आजीवन हम पर भी भार है।
फिर हर बार क्यों?
हमारी आवाज को दबाकर
बुढ़ापे की आशा को
अंधकारमय बनाते हो।
बस क्यों?
अपनी सुविधाओं का
दायरा बढ़ाते हो।
यही तो अपनी कलम से
बताना है मुझे।
तोड़ना हैं इस सारी व्यवस्थाओं को
पदोन्नति,ईएल,इलाज, स्थानांतरण
सामूहिक बीमा का हक लेना हैं मुझे।
समझ चुकी आज कलम भी मेरी
पेंशन की पीड़ा को.....
अब कलम को अपनी
जनचेतना की ताकत बनाना है मुझे।
इन सारे शब्दों को
समेट लूँ मैं अब....
कुछ नायाब से हक भरे
शब्द निकालने है
अपनी कलम से मुझे।
आओ सतत्,निर्बाध,निरंतर उत्साह लिए....
हक के साथ एकजुट हो
हम द्वंद्व का शंखनाद करके
हर रैली,धरने के लिए
सब जन में अलख जगाना है मुझे।
अटेवा,दिल्ली,लखनऊ
जहाँ चल पड़ेगा अपना काफ़िला
उन काफिलों को
उत्साह गीत लिख सुनना है मुझे।
विजय निश्चित ही हो हमारी
हक के आधार को
हर मानस पटल पर
विजयीभव लिखना है मुझे।
कुछ और नहीं
बस हर मजबूर चेहरे से...
चिंता की सिकन मिटाना है मुझे।
अपनी लेखनी से
अपनी मेहनत के हक पर
हस्ताक्षर करना हैं मुझे।
सभी मौन बैठे हैं
उन्हें बस बताना है मुझे।
हाँ अब अपनी लेखनी को तीव्र जुबा बनाना है मुझे।
✍️
दीप्ति राय (दीपांजलि)
सहायक अध्यापक
कंपोजिट विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपुर
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