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अकेला चल रहा हूं



जाते समय सब कुछ छोड़ जाना,
यहाँ कोई रिश्ता, कोई बंधन नहीं है,
यहाँ बस एक कटा हुआ रास्ता है,
जिस पर मैं अकेला चल रहा हूँ।


नहीं है कोई उम्मीद की खिड़की,
जहाँ से हवा आ सके,
यहाँ सब कुछ बंद है,
और मैं इस अंधेरे में अकेला हूँ।


कितना दर्द है इस दिल में,
कितनी टूटी हुई है यह आत्मा,
कितनी बेजान है ये आँखें,
जो कभी प्यार की तलाश में थीं।


तुमने मुझे छोड़ दिया,
और मैं यहाँ अकेला पड़ गया,
मैं नहीं जानता कि क्या करूँ,
और कैसे जीऊँ।



✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।


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