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जब अपने से बाहर देखा

जब अपने से बाहर देखा


बहुत बड़ा है संसार,
जब अपने से बाहर देखा,
अपनेपन का बंधन टूट गया,
जब दुनिया को करीब देखा।


नई नज़र से देखा सब कुछ,
नया नजरिया आया,
अपनेपन की दीवार टूट गई,
जब दुनिया को आया।


बहुत कुछ सीखा दुनिया से,
बहुत कुछ जाना,
अपनेपन की सीमा टूट गई,
जब दुनिया को जाना।


बहुत बड़ा है संसार,
जब अपने से बाहर देखा,
अपनेपन का बंधन टूट गया,
जब दुनिया को करीब देखा।


इस गज़ल में, शायर अपनेपन की सीमा को तोड़कर दुनिया को एक नए नजरिए से देखने का संदेश देता है। जब हम अपने से बाहर निकलकर दुनिया को देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि यह बहुत बड़ा और विविध है। हम अपनेपन की दीवारों से बाहर निकलकर दूसरों के साथ जुड़ सकते हैं और उनके अनुभवों से सीख सकते हैं।

इस गज़ल में, शायर ने चार शेरों में अपनेपन की सीमा को तोड़ने के महत्व को समझाया है। पहले शेर में, शायर बताता है कि जब हम अपने से बाहर निकलकर दुनिया को देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि यह बहुत बड़ा और विविध है। दूसरे शेर में, शायर बताता है कि जब हम अपनेपन की दीवारों से बाहर निकलते हैं, तो हमें एक नया नजरिया मिलता है। तीसरे शेर में, शायर बताता है कि जब हम दुनिया को करीब से देखते हैं, तो हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। चौथे शेर में, शायर अपनेपन की सीमा को तोड़ने के महत्व को दोहराता है।


✍️ शायर : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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