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शिक्षक हुए गुलाम




एक समय था, जब शिक्षक थे समाज के आईने,
वे दिखाते थे समाज को उसके सही-गलत,


वे बोलते थे बेबाकी से,
डरते नहीं थे किसी से,


लेकिन आजकल,
शिक्षकों की जी हुजूरी हो गई है,


वे बोलते हैं सिर्फ वही,
जो सुनना चाहते हैं लोग,


वे डरते हैं बोलने से,
कि कहीं उनका नुकसान हो जाए,


वे डरते हैं नौकरी से हाथ धो बैठने से,
इसलिए अब वे करते हैं जी हुजूरी,


और समाज को आँखों में धूल झोंकते हैं,
वे कहते हैं कि समाज बदल रहा है,


लेकिन सच तो यह है कि,
शिक्षक बदल गए हैं,


वे अब समाज के आईने नहीं हैं,
वे अब समाज के गुलाम हो गए हैं।



प्रयासकर्ता – प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"



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