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"भारत का मध्यमवर्गीय-ना घर का ना घाट का"

"भारत का मध्यमवर्गीय-ना घर का ना घाट का"

इस महामारी में सबको दिखा गरीबों का दर्द और पूंजीपतियों का नुकसान।
पर क्या किसी को भी थी परवाह
 मध्यमवर्ग भी मांगता है रोटी कपड़ा और मकान।
सरकार भी गरीबों को दे रही है राशन ,
और अमीरों को मिलता है कर्ज माफी का आश्वासन ।
पर एक बेचारा मध्यमवर्गीय न ले पा रहा है राशन,
और ना ही है उसके पास अपने घर की ईएमआई की माफी का आश्वासन।
 उसको तो बच्चों की फीस भी पटाना है ,
बिजली का बिल भी चुकाना है ।
सिलेंडर भी लाना है,
 और घर खर्च भी चलाना है ।
सर पर बेटी की शादी है,
 और उस पर यह करोना नाम की बर्बादी है ।
एक तो नहीं मिलती है तनख्वाह,
 उस पर नौकरी जाने का खतरा अथाह ।
 कब तक रखे पैसे को खाऊंगा,
 एक दिन तो परिवार सहित ही मारा जाऊंगा।
 बूढ़ी मां जब यह कहती है- हे भगवान मुझे तू अब ले जा उठा, कम से कम मेरे बेटे का खर्चा बचा।
 एक टीस सी उठती है और दर्द छलक जाता है ,
क्या एक मध्यमवर्गीय परिवार इसलिए इस दुनिया में आता है।
अगर वोट की राजनीति ही वास्तविकता है,
 तो हम भी तो वोटर हैं यह भी तो सत्यता है ।
हे सरकारो  कुछ पैकेज हमें भी दे जाओ,
 कम से कम जीने की नई उम्मीद ही  जगाओ।
बिना अर्थ के हम मारे हुवे है,
जिंदगी से हारे हुवे है।
कुछ आशा का दीपक हमे भी दिखा दो,
डूबती नैय्या को पार करवा दो।

✍️
 सुप्रिया मिश्रा(स.अ.)
 प्रा.वि.गंगा पिपरा
 क्षेत्र- खजनी
 जनपद- गोरखपुर

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