न स्वप्न बने तरु की छाया
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!!न स्वप्न बने तरु की छाया !!
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न स्वप्न बने तरु की छाया,
न प्राणवायु पर लगे ग्रहण,
न जीवनअमृत दूषित हो,
न पर्यावरण प्रदूषित हो !
क्रोधित, पीड़ित, ब्याकुल वसुधा,
निष्ठुर हो प्रतिकार करे,
अपने ही हाथों से मानव,
तू क्यों अपना विनाश करे !
नष्ट कर प्रकृति का नैसर्गिकरण,
ध्वस्त कर पर्यावरण का संतुलन,
घोल कर विष तू जलधि के नीर मे
मानव तू कर रहा शहरीकरण !
मंगल और चाँद पर जा कर,
खोज रहा जीवन की आस,
पर अपनी पृथ्वी से क्यों?
काट रहा जीवन की शाख !
बढ़ते वैभव ने छीन लिया,
मानव से उसका सुख -चैन,
ऊँची -ऊँची अट्टालिकाओ ने,
रौद दिए पशु -पछी की रैन !
कल -कल करती मधुरीम ध्वनिओ मे,
क्रन्दन आज भयंकर है,
जीवन की आधार ये नदियाँ,
स्वयं आज मुश्किल में हैं !
नहीं सुनाई देता तुमको,
क्रन्दन करता सागर,
उठते चक्रवाती तूफान,
और गरजते बादल !
क्यों नही सुहाती तुमको?
प्रकृति की शोभा सुकुमार,
क्यों नही ह्रदय को भाती,
फल -फूलों की पुलकित डार!
हे निष्ठुर !निर्दय, निर्मम हिय,
अब तो सुन अनुदित उच्छवास,
न हो प्रदूषित परि आवरण
स्वच्छ वायु में हम ले श्वास !!
(अनुदित-अकथनीय,
उच्छवास -दुख या पीड़ा में ली गयी लम्बी श्वास )
✍️
नीरजा बसंती (स.अ.)
प्रा. वि.-गहना
ब्लॉक -खजनी
जनपद -गोरखपुर
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