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मैं और मेरे पिता

मैं और मेरे पिता

मां रचयिता पिता निर्माता,
 कष्ट को वह सदा ही हर्ता।
 शत- शत नमन है पूज्य पिता को,
 जो है मेरा जन्मदाता
 अभिलाषा ना अधूरी रही,
 ख्वाहिशें सारी पूरी करी।
 उनकी छत्रछाया में हारना न कभी सीखा मैंने,
 उनके अनुशासन का ही परिणाम जीवन ने मुझे दिया नया आयाम।
 यह पिता की ही सीखे हैं ,
जो देती है मुझे नित नया बल।
 जब अंधेरा छाया गहराता है तो,
 उनका परामर्श ही काम आता है।
 ना जीत के उत्साही बनो और ना हार के हो परेशान, ना घमंड से चूर ना दब्बू होने का ज्ञान।
है पग-पग पर सिखलाया उन्होंने जीवन के उतार-चढ़ाव का ज्ञान,
 कितना मुश्किल है पिता होना,
ना मां की तरह रोना और ना उसकी तरह धीरज खोना।
 आज समझ आता है पिता का त्रृण ना मांँ से कम होता है।
 जब अपने बच्चों के पिता को देखती हूं तब मन जान जाता है मां से कम न पिता का प्यार होता है।
 हे ईश्वर दुनिया के हर पिता की उम्र लंबी कर ,
उनके बच्चों को उनके प्यार से ना  महरूम कर ।
मां तो मां है उनको तो पूजा जाता है ,
पर सच कहती हूं मेरे पिता जैसा ना कोई दूजा है।

✍️
 सुप्रिया मिश्रा(स.अ.)
 प्रा. वि. गंगा पिपरा
 क्षेत्र-खजनी
 जनपद - गोरखपुर

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