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विकास_और_पर्यावरण

विकास_और_पर्यावरण

विकास की अंधी दौड़ में
सब कुछ मानव भूल गया
अपने ही हाथों से मानो
अपना घर है लूट लिया
मानव के सिर माथे देखो
विकास ,विकास ही झूम रहा
कैसे इनको होश में लाऊ
मुझको ना कुछ सूझ रहा

 पर्यावरण का दोहन करके
उस चरम सीमा को पार किया
पर्यावरण आधार जीवन का
ये भी मानव भूल गया

नित फैक्ट्री लगाई 
कर दी प्रकृति पे चढ़ाई
पानी साफ ना रहा
बढ़ी मानव में लड़ाई
कोई पानी को मरे
कोई खाने को लड़े
अपने स्वार्थों के कारण
मानव, मानव से लड़े
जंगल जंगल ना रहा
आशियाना बना
पहाड़ों पर भी देखो
अब रास्ता बना
इतना प्रकृति से देखो
खिलवाड़ हो रहा
अपने हाथो ही मानव
अपना नाश कर रहा

अब भी समय है बचा
मत दो मानव को सज़ा
खूब पेड़ लगाओ
कम फैक्ट्री बनाओ
 हर आंगन हर गली
 बस फूल खिलाओ
करे पेड़ो से प्यार 
हर मानव को सिखाओ
हर मानव को सिखाओ.....

✍️
साधना सिंह (स. अ. )
प्रा. वि. उसवा बाबू
खजनी, गोरखपुर

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